ऑनलाइन पेमेंट करते हुए शायद आपके साथ भी कभी फ्रॉड हुआ होगा और आप बाद में यही सोचते है कि बाद में क्या करें? ऑनलाइन ठगी आज सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है और इसमें भारी आर्थिक नुकसान होता है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने साइबर फ्रॉड के कारण होने वाले वित्तीय नुकसान को रोकने के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर 155260 और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म बनाया है।
इस नंबर को कर लें अपने फोन में सेव, ऑनलाइन ठगी के शिकार होने पर आयेगा काम
राष्ट्रीय हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म साइबर धोखाधड़ी में ठगे गए व्यक्तियों को ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने के लिए एक मैकेनिजम प्रदान करता है ताकि उनकी कमाई को नुकसान से बचाया जा सके।
गृह मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार, केंद्र सरकार की यह पहल एक सेफ और सिक्योर डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने के लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की प्रतिबद्धता को मजबूत कर रही है। हेल्पलाइन को 1 अप्रैल, 2021 को सॉफ्ट-लॉन्च किया गया था। इसके लॉन्च के बाद केवल दो माह की छोटी सी अवधि में ही हेल्पलाइन नंबर 155260 कुल 1.85 करोड़ रुपये से भी अधिक की धोखाधड़ी की गई रकम को जालसाजों के हाथों में जाने से रोकने में सफल रहा है। बता दें कि अब तक दिल्ली और राजस्थान ने क्रमशः 58 लाख रुपये और 53 लाख रुपये की बचत की है।
वर्तमान में सभी प्रमुख सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के सहयोग से हेल्पलाइन नंबर और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म काम कर रहे हैं। इसमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक, इंडसइंड, एचडीएफसी बैंक, ICICI बैंक, AXIS बैंक, यस और कोटक महिंद्रा बैंक शामिल हैं। इसमें सभी प्रमुख वॉलेट और मर्चेन्ट जैसे PayTM, PhonePe, Mobikwik, Flipkart और Amazon भी इससे जुड़े हुए हैं।
हेल्पलाइन नंबर ऐसे करता है काम
1) ऑनलाइन ठगी के शिकार हेल्पलाइन नंबर 155260 पर कॉल करते हैं, जो संबंधित राज्य पुलिस द्वारा संचालित होता है।
2) इसके बाद पुलिस ऑपरेटर धोखाधड़ी लेनदेन विवरण और कॉलर की बुनियादी व्यक्तिगत जानकारी को नोट करते है और उन्हें नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली पर टिकट के रूप में जमा करते है।
3) टिकट संबंधित बैंकों, वॉलेट्स, मर्चेंट्स आदि तक पहुंचाया जाता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे पीड़ित के बैंक हैं या बैंक/वॉलेट जिसमें धोखाधड़ी का पैसा गया है।
4) शिकायत की पावती संख्या के साथ पीड़ित को एक SMS भी भेजा जाता है, जिसमें पावती संख्या का उपयोग करके 24 घंटे के भीतर फ्रॉड की पूरी जानकारी राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर जमा करने को कहा जाता है।
5) इसके बाद संबंधित बैंक, जो अब रिपोर्टिंग पोर्टल पर अपने डैशबोर्ड पर टिकट देख सकता है, अपने इंटरनल सिस्टम में डिटेल्स की जांच करता है।
6) इसके बाद यदि फ्रॉड का पैसा अभी भी उपलब्ध है, तो बैंक उसे रोक देता है, यानी धोखेबाज उन पैसों को नहीं ले सकता। लेकिन वो फ्रॉड का पैसा अगर दूसरे बैंक में चला गया है, तो वो टिकट उस अगले बैंक को पहुंचाया जाता है, जहां पैसा आया है। इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक कि पैसा धोखेबाजों के हाथों से निकलवा न दें।