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फेसबुक पर फर्जी अकाउंट को पकड़ना हुआ मुश्किल
हाल ही में डेटा लीक मामले में विवादों और भारी नुकसान का सामना करने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की सबसे ज्यादा प्रभावशाली साइट फेसबुक ने कड़े कदम उठाए हैं। ऐसे फर्जी अकाउंट्स और पेजों को डिलीट किया जो फर्जी जानकारियां फैला रहे थे और चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे।
फेसबुक ने 35 अकाउंट्स को किया डिलीट
मामले में फेसबुक ने इस साल नवंबर में होने वाले अमेरिकी मध्यावधि चुनावों से पहले ही कुछ ऐसे फर्जी अकाउंट्स और पेजों की पहचान की है, जो पॉलिटिकल फायदों के लिए चुनाव प्रचार में बाधा पहुंचाने का काम कर रहे थे, या जिनको बनाया ही सिर्फ इसी मकसद से था कि चुनावों को प्रभावित किया जा सकें। ऐसे कार्यों में संलिप्त कंपनी ने 35 अकाउंट्स और फर्जी पेजों को अपने प्लेटफॉर्म से डिलीट कर दिया।
इन फर्जी अकाउंट्स से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2016 में अमेरिका के आम चुनावों को गलत ढंग से प्रभावित किया गया है और इसमें रुस की एजेंसियों की अहम भूमिका रही है। हालांकि साफ तौर पर अभी नंवबर में होने वाले मध्यावधि चुनावों के लिए रुस को जोड़कर नहीं देखा जा रहा है। लेकिन ऐसा पाया गया है कि डिलीट किए अकाउंट्स और पेजों में जिस तकनीक रिसर्च एजेंसी या उपकरणों का इस्तेमाल किया गया है उनके तार रुस के उन्हीं लोगों से जुड़े हुए हैं जिनमें 2016 के आम चुनावों को प्रभावित करने का आरोप लगा है।
क्या है साइबर एक्सपर्ट का कहना
फिलहाल, साइबर सुरक्षा एक्सपर्ट्स का कहना है कि अभी साफ नहीं हो पाया है कि वास्तव में इस साज़िश के पीछे कौन है। कंपनी ने अपने ब्लॉग में कहा है कि फेसबुक पर 16 और इंस्टाग्राम पर 7 ऐसे फर्जी अकाउंट्स को पहचाना गया जो इस साज़िश का हिस्सा हैं और इनमें लोगों को प्रभावित करने में भारी मात्रा में पोस्ट अपडेट की गई है। कई अकाउंट्स और पेजों पर करीब 10 हजार के पोस्ट शेयर हुए हैं वहीं, कुछ अकाउंट्स के लाखों में भी फॉलोअर्स पाए गए हैं। यहीं नहीं जांच में सामने आया कि इन खातों पर करीब 150 एड्स चलाई जा रही थी जिनकी लागत 11 हज़ार डॉलर है।
अब फर्जी खातों को पहचानना बना चुनौती
वॉशिंगटन की डिजीटल फॉरेंसिक रिसर्च लैब के एक सीनियर अधिकारी ने बेन निमो ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि उन्होंने नोटिस किया है कि इन फर्जी अकाउंट्स के धारक या अकाउंट क्रिएटर्स अपनी पिछली गलतियों से सावधान हो गए हैं और अब जो हाल ही में नए बने पेज या अकाउंट्स सामने आ रहे हैं, उनको पहचान पाना चुनौती बना हुआ है। अब ये क्रिएटर्स ऑरिजिनल लेख यानि कॉन्टेंट की बजाए ऐसा कॉन्टेंट कॉपी करते हैं जो पहले से ही इंटरनेट पर मौजूद होता है। ताकि इन अकाउंट्स पर शक ना किया जा सकें। तभी इस बार फेसबुक नहीं पता लगा पाई कि इस कैपेंन या प्रोपेगेंडा के पीछे किसका हाथ है?
इस तकनीक का हुआ इस्तेमाल
बता दें कि फेसबुक के मुताबिक रुस की इंटरनेट रिसर्च एजेंसी ने पहले की बजाए इस बार सतर्कता से काम किया है और फर्जी अकाउंट्स को शक से कटघरे से बचाने के लिए वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क्स का इस्तेमाल किया है। इसके साथ ही एड्स के लिए किसी थर्ड पार्टी को भी शामिल किया गया है। इसी कारण कंपनी आईपी एड्रेस की भी पहचान नहीं कर पाई।
खैर, एक तरफ फेसबुक भी अपनी साख बचाने के लिए काफी कड़े कदम उठा रहा है और लगातार ऐसे अकाउंट्स पर निगरानी रखे हुए हैं जो फेक न्यूज़ लोगोंं तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। मगर वहीं फर्जी अकाउंट्स भी सावधानियां बरत रहे हैं। तो देखना होगा कि अपने इस कड़े इम्तिहान में फेसबुक कैसे कामयाबी हासिल करती है।
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