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एलेना कॉर्नारो पिस्कोपिया के जन्मदिन पर गूगल ने बनाया खास डूडल
हर एक खास मौके को याद करते हुए गूगल एक बार फिर से डूडल को सजाया है। गूगल ने अपने होमपेज पर एक महिला की तस्वीर लगाकर डूडल बनाया है और जिनका नाम एलेना कॉर्नारो पिस्कोपिया है। दरअसल, दुनिया की पहली पीएच.डी डिग्री धारक महिला एलेना का आज 373वां जन्मदिन है। जिस मौके पर गूगल ने डूडल पर उनकी तस्वीर लगाई है।
दुनिया की पहली पीएच.डी डिग्री धारक महिला एलेना के 373 जन्मदिन पर गूगल ने यह डूडल बनाया है। एलेना कॉर्नारो पिस्कोपिय उस समय में पीएच.डी. डिग्री प्राप्त कर ली जब महिलाएं कम पढ़ी लिखी हुआ करती थीं। ऐसे में यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि है। उनके पिता का नाम जियानबेटिस्ता कॉर्नारो और माता का नाम जानेटा बोनी था।
एलेना बचपन से ही काफी प्रतिभाशाली थी। जिसको देखते हुए एलेना के एक पारिवारिक मित्र ने उन्हें ग्रीक और लैटिन भाषा का अध्ययन करवाया। इसके साथ ही एलेना को हार्पसीकोर्ड, क्लैविकॉर्ड, वीणा और वायलिन के साथ-साथ हिब्रू, स्पेनिश, फ्रेंच और अरबी में भी महारत हासिल थी। गणित, दर्शन और धर्म से जुड़े अध्ययन में भी अपना वक्त देने वाली एलेना को संगीत में भी विशेष रुचि थी।
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यही नहीं उन्हें संगीत के श्रेत्र में भी रूचि थी, संगीत के क्षेत्र में भी उन्हें कई वाद्य यंत्र बजाने आते थे। वीणा, वायलिन, हार्प्सिकॉर्ड और क्लाविकॉर्ड बजाना सीखने के बाद उन्होंने कई धुनें भी बनाईं। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 7 साल शिक्षा और चैरिटी के नाम को समर्पित कर दिए। भौतिकी, खगोल विज्ञान और भाषा विज्ञान में भी उन्होंने खुद को साबित किया और 26 जुलाई, 1648 में उनकी मृत्यु हो गई।
उन्हें इस दौरान कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। पडुआ विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने के दौरान ऐलेना कॉर्नारो पिस्कोपिया के एक डॉक्टरेट ऑफ थियोलॉजी के लिए आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था, क्योंकि चर्च के अधिकारी एक महिला को यह उपाधि नहीं देना चाहते थे।
इस दौरान संघर्ष करते हुए ऐलेना ने अपने पिता के समर्थन से डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी के लिए आवेदन किया। साल 1678 में ऐलेना कॉर्नारो पिस्कोपिया की मौखिक परीक्षा में इतनी रुचि पैदा हुई कि समारोह विश्वविद्यालय के बजाय पडुआ कैथेड्रल में आयोजित किया गया जिसमें प्रोफेसर, छात्रों, सीनेटरों को शामिल किया गया और सभी इटली के विश्वविद्यालयों से मेहमानों को आमंत्रित किया गया था।
इस आयोजन में ऐलेना कॉर्नारो पिस्कोपिया ने लैटिन में बोलते हुए अरस्तू के लेखन से मुश्किल से चुने गए कठिन पैरा को समझाया। उनकी इस वाक्पटुता ने समिति को बहुत प्रभावित किया, जिसके बाद उन्होंने गुप्त मतपत्र के बजाय अपनी स्वीकृति व्यक्त की।
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