हिंदी पब्‍लिशरअपना रहे हैं नई तकनीक

By Rahul
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अंग्रेजी साहित्य के तेजी से फैलाव का मुकाबला करने और देसी भाषा के साहित्य के खोए हुए कद को फिर से हासिल करने के लिए हिंदी के प्रकाशक मोबाइल एप्लिकेशन लांच कर रहे हैं, ताकि लोग ई-बुक पढ़ सकें। हर क्षण बदलती तकनीक की गति से तालमेल बनाते हुए और लगातार सिकुड़ती अपनी पाठक संख्या को फिर से जोड़ते हुए देश के सबसे पुराने प्रकाशक राजकमल प्रकाशन ने अपने कारोबार मॉडल को बदल लिया है ताकि वह बदलते समय के साथ तालमेल रखते हुए खुद को 'विकासशील' प्रकाशक के रूप में पेश कर सके।

राजकमल प्रकाशन के निदेशक अशोक माहेश्वरी ने कहा, "पाठक बदलाव चाहते हैं और एक प्रकाशन संस्थान के रूप में यदि आप उनकी जरूरतों को समझने में विफल रहते हैं तो अपका कारोबार मॉडल विफल हो जाएगा। इसलिए हमारे लिए डिजिटल होना और ई-बुक प्रकाशित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अब हमने एक एप्लिकेशन को लांच किया है।"

उन्होंने कहा, "हिंदी प्रकाशन उद्योग में एक बड़ी रिक्ति भी है। इसलिए हमने इस रिक्ति को भरने का फैसला लिया और ऐसे उपन्यास प्रकाशित करना शुरू किया है जो समकालीन हैं व युवा वर्ग को ज्यादा पसंद हैं।" बदलाव की चल रहीं हवाओं के बीच राजकमल प्रकाशन ने ऑनलाइन खुदरा बाजार के महत्व को समझा है।

इस बदलाव का साक्ष्य प्रकाशन के नवीनतम उपन्यास 'इश्क में शहर होना' है। इस उपन्यास के लेखक टीवी पत्रकार रवीश कुमार हैं जिसके लिए प्रकशन संस्थान ने आमेजन डॉट इन से ऑन लाइन करार किया है। यह किताब भी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की लिखी किताब 'दी ड्रामैटिक डिकेड : दी इयर्स ऑफ इंदिरा गांधी' के लिए ऑनलाइन खुदरा विक्रेता के साथ तीन सप्ताह का विशेष सौदा हुआ था।

हिंदी पब्‍लिशरअपना रहे हैं नई तकनीक

हिंदी साहित्य की नौका में प्रेमचंद, मोहन प्रकाश और अमर गोस्वामी जैसे मशहूर लेखक हैं। इन लेखकों ने अपने लेखन में सामाजिक बुराई को सामने लाने के जरिए नए युग की सूचना देने का काम किया था। पिछले दो दशकों में हिंदी साहित्य का आभामंडल लुप्त हो गया और अंधेरे के लिए संपर्क भाषाओं के उदय पर आरोप मढ़े गए। इस धीमी मौत के लिए कई लोग पाठकों की संख्या गिरने का रोना रोते रहे, तो अन्य का माना है कि हिंदी के पाठक 'पैसे निकालने की इच्छा नहीं रखते हैं।'

शिल्पायन प्रकाशन के निदेशक कपिल भारद्वाज ने कहा, "पाठक हैं, लेकिन वे हमेशा हिंदी किताबों पर ढेर सारा पैसा खर्च करना नहीं चाहते हैं। हमारे पास भी हमारी पुस्तकों का प्रचार करने के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। इसलिए एक कारण से या अन्य कारण से उद्योग पिछड़ रहा है।"

उन्होंने कहा, "दूसरी चिंता 'वर्ग को बनाए रखने' की धारणा है। धीरे-धीरे मानसिकता यह बन रही है कि यदि आप हिंदी किताब पढ़ रहे हैं तो लोग आपके बारे में विचार बनाएंगे। वे शायद यह मान लेंगे कि आप अंग्रेजी नहीं जानते।"

भारद्वाज ने कई आलोचना, उपन्यास और मशहूर व नए लेखकों के व्यंग्य पुस्तकों का प्रकाशन किया है। उन्होंने पाकिस्तानी लेखकों के अनुवाद का भी प्रकाशन शुरू किया है।

 
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